Wednesday, September 7, 2016

इक़रार


मेरे हर अफशाने में तुतुझे एक पैगाम लिखता हूँ |
जो तु कहे सुबह को शामतो मैं शाम कहता हूँ |
तुझे क्या मालूम तुझसे कितनी मोहब्बत,
मेरी जान करता हूँ |
अगर तु मांगे इम्तिहाने मोहब्बत मेरी जान तो,
ले तुझे अर्पित जान संग ईमान करता हूँ |
तु जो भी कहे मैं उन सबपर एहतराम करता हूँ |
हो जाये नुख्श अगर मोहब्बत में,
तो हो गुश्ताखी माफ़ ऐसी माँग करता हूँ |
कह दे अगर काफ़िर मुझे दुनिया तेरी मोहब्बत में,
ये सजा स्वीकार करता हूँ |
जाने कब हो गयी इतनी मोहब्बत तुझसे ,
यही सोचकर मैं भी हैरान रहता हूँ |
मैं आशिक हूँ ,लोग समझे मुझे पागल
पर तेरे ख्यालों में खुश मैं यार रहता हूँ |
हँसना उनका काम उन्हें क्या पता कि,
मैं कीस हसीना से प्यार करता हूँ |
चाहे ना हो ज़माने में मेरी कोई इज्जत ,
पर मैं दिल से तेरी इज्जत यार करता हूँ |
जो भी करे मुझे तुमसे दूर ,
ले आज मै खुद को उनसे दूर यार करता हूँ |
अब चाहे जो भी हो अंजामें मोहब्बत,
ले आज बिना डरे तुझसे इक़रार करता हूँ |
                                - राजीव रंजन 

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