इस ज़माने में कौन सच्चा है?
सबने अपने मतलब के लिए दिया, एक दुसरे को गच्चा
है |
सोचा की हर धर्मार्थ का सेवक सच्चा है ,
पर ये क्या ? यहाँ भी कुदरत ने अजीब खेला है,
सब एक दुसरे के धर्म पथ को दर्शाये झूठा,
और सुनाये उसका सच्चा है !
पर बचपन में पढ़ाया था ‘सबका मालिक एक है’
“फिर कौन सच्चा है?”
सोचा की शराबी सच्चा है?
कुछ अहम् मुद्दों पे हुआ उससे मुखातिब,
सारे मुद्दे कुछ दिन में निपटा दुँगा,
ऐसा वचन उसके मुख मण्डल से निकला है,
पर नशे की लत में उसके पास दिन ही कितना बचा है?
“फिर कौन सच्चा है?”
सोचा की सम्बन्धी सच्चा है,
अनवरत अपनी इच्छाओं का उसने ख्याल रखा है,
मैं आगे बढू उसने ये ख्वाब सजा रखा है |
पर दिल के एक कोने में अपनी आकांक्षाओ को दबा
रखा है |
जिसे मुझ सहित ज़माने से छुपा रखा है,
“फिर कौन सच्चा है?”
- राजीव रंजन
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