दोस्तों शायद ये मेरी पहली ऐसी कविता है, जो जीवन
में सीख देने के साथ -साथ एक भावनात्मक व्यंग भी है | ये कविता मैं ऐसे लोगों को
समर्पित करता हूँ जो संकुचित विचार के होते है और किसी भी चीज को अलग-अलग तरीकों
से सोचने के बजाय अपनी खुद की कुंठीत मंशा को ज्यादा तवज्जो देते हैं | दोस्तों
ऐसे लोग जीवन में तरक्की पसंद नहीं करते सिर्फ एक नकारात्मक समीक्षक कि भूमिका
निभाते है, और आपके भी कार्य कुशलता को प्रभावित करते हैं, इनमे जलने कि भावना
दूसरों कि थोड़ी सी भी तरक्की देख के जंगल में फैले आग कि तरह बढ़ जाती है | तो मैं यहीं
कहूँगा ऐसे लोगों से सचेत रहें, सावधान रहें और जिंदगी में हर चीज से कुछ न कुछ अच्छा
सिखाने कि कोशिश करते रहें |
बहरहाल इस कविता का आनंद लें और अपने विचार हमें जरुर बतायें |
सीखनें कि सोंच
मेरी सोंच मुझे मुबारक, तेरी सोंच तुझे मुबारक |
हो सकता है, मैं गलत सीख रहा हूँ ,
पर जो सीख रहा हूँ, अलग सीख रहा हूँ |
अब तू मुझे ये समझाये, मैं क्या सीख रहा हूँ |
तो मुझे लज्जा आये, क्यूंकि तेरी नियत का इतिहास सामने आए,
तेरे किये करामत मुझे याद आए |
तेरे सीखने में जरूरत ज्यादा नियत कम है |
मेरे सीखने में चीजों के लिए इज्जत है, अदब है |
फिर भी तू मुझे बोले कि तू गजब है |
न जाने क्यूँ मै सीखता हूँ तो तेरे जलने कि बू अआती है |
कोशिश तो सीखने कि तूने भी की थी,
पर तेरे सीखने में तेरी सोंच आड़े आ गई,
मैने सोंच सुधारी जिंदगी इसमें भी कुछ सीखा गई |
माना मैंने गलत से कुछ सीखा, पर मैंने उसमे से भी सिर्फ अच्छा सिखा |
गलत में तो तू भी था. अगर नहीं था,
तो पड़ना तो जरुर चाहता था |
ये बात दिल से पूछ याद आएगी कि तू क्या चाहता था |
हो सकता है, गलत जान तूने बीच में छोड़ दिया |
या अब भी सीखना चाहता है, पर चीजो ने तुझसे मुँह मोड़ लिया |
अगर चीजें अब भी है तो,
ऐ दोस्त नियत बदल बूरे में भी तुझे अच्छा दीखेगा |
अपने अन्दर चीजों के लिए कदर ला, इज्जत कर, उसे संभाल,
खुदगर्जी दूर भगा, थोड़ी इंसानियत जगा |
तेरी जलन ठीक हो जाएगी |
तू चीजों कि इज्जत करेगा, तो तू भी इज्जत पाएगा |
गलत लोगों में भी अच्छा नाम और इज्जत कमाएगा |
जब तू अपनी सोंच ऐसे बदलेगा,
हर चीज में कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा |
फिर तू अपने सीखने केि सोंच बदल पाएगा |
-राजीव रंजन

Dil ko chuu lia
ReplyDeleteधन्यवाद हिमांशु साहब
ReplyDeleteHi
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